कई वर्षों पूर्व अम्बेडकर सिटी नामक गाँव में हरिराम महतो नाम का बेरोजगार युवक रहता था, एक बार वो नौकरी की तलाश में शहर जा रहा था, शहर का रास्ता जंगलों से होते हुए जाता है।
बहुत देर तक चलते हुए हरिराम थक गया था, वहीं बबूल के पेड़ को देख कर नीले आकाश के नीचे उसने आराम करना उचित समझा, आराम करने से पहले उसने अपने नीले झोले से भीम चालीसा निकाली और नीलकमल पुष्प अर्पण करके चालीसा पढ़ने लगा।
हरिराम चालीसा पढ़ने में लीन था, तभी वहाँ से नीलगायों का झुंड निकला उसमें एक नीलगाय एकदम नटखट थी, उसने हरिराम को दुलत्ती मारी और भीम चालीसा को खा गई, हरिराम बौरा गया और नीलगाय के पीछे पड़ गया, नीलगाय आगे आगे और हरिराम पीछे पीछे, नीलगाय आगे आगे और हरिराम पीछे पीछे।
काफी दूर निकल जाने के बाद नीलगाय ने गोबर कर दिया और वहाँ से कट ली, हरिराम पागलों की तरह उस गोबर पर टूट पड़ा, गोबर को खोदने लगा, उसपर लोटपोट करने लगा, अंततः उसे गोबर में कोई चीज़ दिखाई दी,
उसने उसे निकाला तो देखा कि भीम चालीसा की जगह एक डायरी निकली जिस पर लिखा था - "बाबा की डायरी"
हरिराम को बहुत आत्मग्लानि हुई वो प्रायश्चित करने लगा "जै भीम जै भीम" करके दंड बैठक करने लगा तभी अचानक बाबा की डायरी से नीला प्रकाश निकला और उसमें से नीली दाढ़ी वाले बाबा प्रकट हुए (हरबार भीम ही प्रकट होते रहेंगे क्या)
बाबा प्रकट होते ही बोले "बस कर पगले रुलाएगा क्या..?, बता तेरी क्या समस्या है"
हरिराम ने अपना सारा दुखड़ा बाबा के सामने रो दिया...
बाबा बोले बस इतनी सी बात जा तेरे लिए मै आरक्षण नाम के एक तंत्र का अविष्कार करता हूँ, जिससे तुझे शहर जाते ही नौकरी और छौकरी दोनों मिलेंगी .
अतः आरक्षण पर दलित भाइयों का जन्मसिद्ध अधिकार है.
जय भीम
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