विवाहित स्त्रियों का प्रतिक है सिन्दूर
सिन्दूर श्रृंगार के लिए प्रसाधन मात्र नहीं है इसके पीछे सदियों से चली आ
रही आस्था भी जुडी है, विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की लम्बी उम्र के लिए
अपनी मांग को सिन्दूर से सुसज्जित करती आ रही हैं
लाल रंग शक्ति का प्रतिक माना है, और सिन्दूर माँ सति
और माँ पार्वती के नारीशक्ति का प्रतिक माना गया है. जो स्त्रियाँ अपनी
मांग में सिन्दूर का धारण करती हैं उनके पति की रक्षा स्वयं माँ पार्वती
करती हैं .
सिन्दूर का इतिहास
सिन्दूर से मांग भरने की परम्परा हिन्दू समाज में 5000 वर्षों से चली आ
रही है, मेहरगढ़, बलूचिस्तान में खुदाई में हड़प्पा काल की मूर्तियों के
अवशेषों से पता चलता है की हड़प्पा संस्कृति में भी सिन्दूर का प्रचलन था.
भगवान श्री कृष्णा के लिए भी राधा कुमकुम का इस्तेमाल किया करती थीं .
प्रेमवश श्रीराम भक्त भगवान बजरंगबली ने भी भगवान् श्रीराम की लम्बी उम्र के लिए खुद को सिन्दूर से रंग लिया था.
महाभारत में भी द्रोपदी द्वारा सिन्दूर के प्रयोग किये जाने का उल्लेख है.
ज्योतिषशास्त्र में सिन्दूर का महत्व
भारतीय ज्योतिषी के अनुशार मेष राशी शरीर के उपरी हिस्से माथे पर विराजमान
है, मेष राशी के गुरु मंगल हैं जिसका रंग लाल है अतः लाल सिन्दूर माथ पर
धारण करना शुभ माना गया है . ये सोभाग्य एवं शक्ति का प्रतिक है.
सिन्दूर का वैज्ञानिक महत्व
सिन्दूर हल्दी मरकरी सुपारी की राख एवं अन्य औषधि गुणों वाले पदार्थो के
मिश्रण से बनाया जाता है, माथे का वो हिस्सा जहाँ सिन्दूर लगाने की परम्परा
है वो महिलाओं के मस्तिस्क के अति संवेदनशील ग्रंथियों से जुड़ा होता है
और ये ग्रंथियां केवल महिलाओं में ही पायीं जाती है, क्योंकि सिन्दूर में
मरकरी नाम की धातु मिली होती हैं जो की इन ग्रन्थियों में होने वाले
रक्त प्रवाह को नियंत्रित कर महिलाओं को तनाव मुक्त एवं अन्य मानसिक
बिमारिओं से दूर करने में सहायक करती है, मरकरी sex के प्रति रूचि में
बदलाव करती है इस कारण सिन्दूर का प्रयोग करने से अविवाहित या विधवा
स्त्रियाँ को मनाही है.
यह ब्रह्मरंध्र नाम की ग्रंथि पुरुषों में नहीं पाई जाती इसलिए पुरुषों को सिन्दूर लगाने की परम्परा नहीं है
धन्यवाद
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